तुम्हारा जाना इतना दुखदायक नहीं था, जितना दुख दे रहा था तुम्हारा पीछे मूड कर न देखना | आखिर हम भी 1990 के दशक के बच्चे हैं | हम दोनों ने ही लगभग वो सभी फिल्मे देखी है जहा स्टेशन पर अलविदा कहते हुए आगे चलकर कहा जाता है “पलट …..पलट…..” |फिर भी तुमहारा ना पलटना असवेदनशील सिद्ध करता है तुम्हें। अगर हम होते बीसवीं सदी मे तो शायद …..मैं ये मान सकती थी कि कुछ दिनों तक हमारी बात ना हो पाने का कारण है संचार साधनों की कमी। लेकिन 21वी सदी के डिजिटल जमाने मे एक फोन कॉल का ना आना पहुंचाहता है दिल को ठेस।
जरूरत है वो या जरूरी सवाल उठता है ,
वो मेरा होते हुए मेरा नहीं लगता है |
रात के 9 बजे आनंद विहार टर्मिनल इतना भी सुखद नहीं होता की अकेली लड़की को वहा छोड़ एक कॉल तक ना की जाए, बेशक दिल्ली है लेकिन निर्भय और ना जाने कितनी ही निर्भया जो अखबार की सुर्खिया नहीं बनी, इस दिल्ली मे ही उजड़ी है। जकब पको नहीं पता होता की कहा से जाया जाए तब लोग आपकी मदद की जगह आपको घूरने लगते है, एक भीड़ जिसमे ओरतो की संख्या होती है ना के बराबर, और आपको घूर रही होती है, जिन्हे फर्क नहीं पड़ता की आप सूट मे है या जीन्स मे आपका शरीर पूरा ढाका हो | फिर भी उनकी आँखे तो नंगी ही रहने वाली है उन सभी तथाकथित समाज सेवीओ को ले जाना चाहिए ऐसी जगह जो मीडिया मे देते है लंबे-लंबे भाषण और उन सभी सामाजिक ठेकेदारों को भी भेज देना चाहिए ऐसी ही जगह जो समाज की मर्यादा समझाने मे कभी पीछे नहीं हटते, वो सभी cctv कैमरा आपको नहीं बचा सकते उन आँखों से , जो एक चीज आपको आगे बड़ने की हिम्मत देती है वो है आपका आत्मबल |
घर से जाते वक्त जो उत्साह था तुमसे मिलने का वो आते वक्त नफरत को बड़वा दे रहा था और रह रह कर उठ रहे थे कई सवाल “आखिर क्या वजह थी तुमसे मिलने की ?” कभी न कभी तुम वापिस तो आते ही | या शायद डर था और दुख भी की तुम नहीं दिखोगे अगले कुछ दिन,वो बेवजह की बहस नहीं होगी, वो कॉल पर कहा तक पहुचे/पहुची नहीं होगा और जिद्द भी नहीं देखोगे ओर दिखाओगे, वो छोटी-छोटी लड़ाई नहीं होंगी | मेट्रो स्टेशन पर इंतजार कोन करेगा ? वो इंतज़ार के बाद वाला झुट-मूट का गुस्सा कोन करेगा? लतीफे किस्से सुने जाए और किसे सुनाए जाए? मेट्रो में किसे जाते देख आँखे नम की जाए? बेवकूफ कौन बताने वाला है ये भी तो मसला है| और इस सब मे सच मैं भूल गई की तुम नहीं गए हो औरों की तरह हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर | तुम आओगे जल्द लौट कर,फिर लड़ेंगे और डाटूँगी भी की क्यू नहीं देखा तुमने पीछे मुड़ कर|
तुम्हें सोच -सोच कर
अक्सर खुद में मुस्कुराती
नाम साथ उकेरती हूँ
फिर हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाती हूँ
वो सभी फिल्मे जो आज तक देख कर बड़ी हुई थी यही क्षण तो उन्हे सच कर रहा था और तुमने वही खराब कर दिया। जब दिल्ली वापिस आओगे मैं फिर आऊँगी आनंद विहार टर्मिनल उसी आत्मबल के साथ …..
हमारी कहानी से ……….
Bhaut aacha likha hai us waqat or abhi ki disha bhi hai sath hi usse milne ki lalsa or manodasha bhi jalak rahi hai
Awesome work🙌
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shukriya himanshu
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Bhut badiya 😏chhaya madam ji
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shukriya rohit ji
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Bahut khoob likha h chaaya ji aise hi likhte rahyi ❤️❤️
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shukriya di ❤
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Bht Acha Likha h Aapne 👏#ourfuturewritter….✍️✍️
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thnk uh so much noor
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बहुत ख़ूब, अच्छा प्रयास हैं छाया ❤️❤️💐ऐसे ही लिखते रहों👍🏻
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thnk uh
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बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने।मात्राओं पर विशेष रूप से ध्यान रखें।भावपक्ष जीवंत और मजबूत है।☺️😊👌✍️
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thnk uh
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My pleasure
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